मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में सत्तारुढ़ भाजपा ने 19 सीटों पर विजय हासिल कर सदन में सुविधाजनक बहुमत हासिल कर अपनी आठ महीने पुरानी सरकार की नींव मजबूत कर दी है। इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी पार्टी कांग्रेस के प्रदेश की सत्ता में वापस आने के मंसूबे ध्वस्त हो गये।
प्रदेश में 28 सीटों के उपचुनाव के तहत तीन नवंबर को मतदान हुआ था। इसके बाद 10 नवंबर को मतों की गिनती के बाद देर रात तक आये परिणामों में सत्तारुढ़ भाजपा ने 19 सीटों पर विजय हासिल कर ली, जबकि विपक्षी कांग्रेस को नौ सीटों पर संतोष करना पड़ा है।
इसके साथ ही 230 सदस्यीय सदन में अब भाजपा के विधायकों की संख्या 107 से बढ़कर 126 हो गयी है, जबकि कांग्रेस के विधायकों की संख्या 87 से बढ़कर 96 हो गयी है। उपचुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस के एक विधायक के त्यागपत्र देने के कारण सदन में सदस्यों की वर्तमान में संख्या 229 है। इस हिसाब से वर्तमान में सदन में साधारण का बहुमत का आंकड़ा 115 होता है। प्रदेश में भाजपा अब 126 विधायकों के साथ सुविधाजनक बहुमत में आ गयी है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने जो 19 सीटें जीती हैं, उनमें अम्बाह, मेहगांव, ग्वालियर, भांडेर, पोहरी, बमोरी, अशोक नगर, मुंगावली, सुरखी, मलहरा, अनूपपुर, सांची, हाटपिपल्या, मांधाता, नेपानगर, बदनावर, सांवेर, सुवासरा एवं जौरा शामिल हैं। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस ने सुमावली, मुरैना, दिमनी, गोहद, ग्वालियर पूर्व, डबरा, करैरा, ब्यावरा एवं आगर सीट पर विजय हासिल की है।
उपचुनाव में उतरने वाले 12 मंत्रियों में से तीन मंत्री पराजित भी हुए हैं। इनमें प्रमुख तौर पर इमतरी देवी डबरा विधानसभा क्षेत्र से 7,633 मतों से पराजित हुई हैं। मंत्री गिर्राज दंडोतिया दिमनी से 26,467 मतों से हारे, जबकि एक अन्य मंत्री एदल सिंह कंषाना सुमावली से 10,947 मतों से पराजित हुए।
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डबरा से भाजपा की उम्मीदवार इमरती देवी तब चर्चा में आई थीं, जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान एक चुनावी सभा में भाजपा की इस महिला उम्मीदवार को कथित तौर पर ‘‘आइटम’’ कहा था। कमलनाथ की इस टिप्पणी पर राजनीतिक हल्कों में काफी जुबानी जंग भी हुई थी।
मध्यप्रदेश के नौ मंत्रियों डॉ. प्रभुराम चौधरी (सांची सीट, मतों का अंतर- 63,809), बिसाहूलाल सिंह (अनूपपुर, मतों का अंतर- 34,864), महेन्द्र सिंह सिसौदिया (बमोरी- मतों का अंतर 53,153), राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (बदनावर, मतों का अंतर 32,133 ), हरदीप सिंह डंग (सुवासरा, मतों का अंतर 29,440), प्रद्युम्न सिंह तोमर (ग्वालियर, मतों का अंतर 33,123), ओपीएस भदौरिया (मेहगांव, मतों का अंतर- 12,036), सुरेश धाकड़ (पोहरी, मतों का अंतर- 22,496) एवं बृजेन्द्र सिंह यादव ने (मुंगावली, मतों का अंतर 21,469) जीत हासिल की है।
इनके अलावा, सिंधिया के समर्थक तुलसी सिलावट (सांवेर से) 53,264 मतों के बड़े अंतर से एवं गोविन्द सिंह राजपूत (सुरखी) 40,991 मतों के अंतर से विजयी रहे। इन दोनों को भी चौहान की सरकार में मंत्री बनाया गया था, लेकिन उपचुनाव के लिए हुए मतदान से कुछ ही दिन पहले इन्हें मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था, क्योंकि इन्हें विधायक बने बिना मंत्रिपद पर बने हुए छह महीने पूरे होने वाले थे।
सिंधिया के साथ मार्च माह में तत्कालीन सत्तारुढ़ कांग्रेस को छोड़ने वाले 22 विधायकों में से 15 इस उपचुनाव में विजयी हुए हैं, जबकि तीन मंत्रियों सहित सात सिंधिया समर्थक नेता चुनाव हार गये हैं। हालांकि, कांग्रेस ने अपनी सरकार गिराने के कारण सिंधिया को गद्दार की संज्ञा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने एवं कमलनाथ की तत्कालीन सरकार गिराने के अपने निर्णय को यह कहकर सही ठहराया था कि कांग्रेस की इस सरकार ने किसानों की कर्जमाफी सहित अपने चुनावी वादे पूरे नहीं किये। इसलिए उनके पास कमलनाथ की सरकार को गिराने के अलावा कोई विकल्प बचा नहीं था।