इतनी बड़ी दुनिया में आए दिन कुछ न कु अच्छा या फिर बुरा घटित होता रहता है। फिर चाहे धरती पर हो या फिर सुदूर अंतरिक्ष में। इनमें से कई सारी घटनाएं ऐसी होती है जो समय रहते भुला दी जाती हैं,लेकिन कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं ऐसी भी होती है जिसे इतिहास में अपना नाम दर्ज कराती हैं।
इन्हीं मुख्य घटनाओं की लिस्ट में शामिल है 1974 में 18 मई का दिन जो कि एक ऐसी अहम घटना के साथ ही इतिहास में दर्ज है,जिसने भारत को दुनिया के परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा कर दिया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत ने आज के दिन ही राजस्थान के पोखरण में अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण को स्माइलिंग बुद्घा का नाम दिया गया था। ये पहली बार था जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्य देशों के अलावा भी किसी अन्य देश के परमाणु परीक्षण करने का साहस किया था।
इस परीक्षण की प्रस्तावना साल 1972 में लिखी गई थी। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री और भारत की महिला शान इंदिरा गांधी ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र बीएआरसी का दौरा किया था और वहां के वैज्ञानिकों से बातों ही बातों में उन्हें परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की इजाजत दे दी।
45 साल पहले भी आज के दिन थी बुद्घ पूर्णिमा
बता दें कि 45 साल पहले भी बुद्घ पूर्णिमा 18 मई 1974 के दिन थी और ये दिन जहां भारत के लिए गौरवशाली का था तो वहीं जैसलमेर के लोगों के लिए ये दिन काफी भाग्यशाली रहा था। क्योंकि उस दिन भी बुद्घ पूर्णिमा थी और आज पूरे 45 साल बाद भी 18 मई के दिन बुद्घ पूर्णिमा है।
इस खास दिन के मौके पर राजस्थान के जैसलमेर से करीब 140 किमी दूर लोहारकी गांव के पास मलका गांव में 18 मई 1974 को भारत ने दुनिया में अपनी परमाणु शक्ति का कारिश्मा दिखाया था।
मलका गांव के जिस सूखे कुएं में सबसे पहली बार परमाणु परीक्षण किया गया था। उस जगह पर एक बहुत बड़ा गड्ढा और उभरी हुई जमीन आज भी उन अच्छे पलों की कहानियां को बयां करती है। जब लोहारकी गांव के प्रथम परमाणु स्थल पर वैज्ञानिकों ने बटन दबाकर जब न्यूक्लियर धमाका किया तो उसकी गूंज न सिर्फ पूरी दुनिया में गुंजी बल्कि इसके साथ ही पोखरण का नाम भी विश्व मानचित्र पर उभर गया ।
इस जगह को फिलहाल चारों ओर से फेंसिंग करके घेर दिया गया है। इस जगह सेना ने करीब 500 मीटर के घेरे में तारदंबदी कर रखी है,लेकिन गांव वालों को किसी बात का अफसोस है तो वो है कि कहीं भी न तो इसकी विजयी गाथा के बारे में बताया गया है और न ही यहां पर कोई स्मारक का निमार्ण किया गया है। ताकि जिससे आने वाली पीढिय़ों को इस बात के बारे में रुबरु कराया जाए कि ये वहीं धरा है जिसने भारत का ही नहीं बल्कि बाकी देशों का भी मान सम्मान बढ़ाया है।