भारतीय समाज में फोटोग्राफर गणेश टोस्टी ने बलात्कार के मुद्दे को तस्वीरों की सीरीज के द्वारा हाईलाइट करके बताया है। इन तस्वीरों की कहानी तनिरिका नाम की एक लड़की के आस-पास यह कहानी दिखार्ई जा रही है। इस लड़की का कुछ लड़के बलात्कार करने की कोशिश करते हुए इन तस्वीरों में दिखार्ई दे रहे हैं।
इन तस्वीरों में यह भी दिखाया गया है कि लड़का उन लड़कों को ऐसा करने से रोकता है लेकिन कहानी के अंत में यह दिखाया गया है कि परिस्थिति कैसी भी हो हमेशा एक लड़की को ही गलत ठहराया जाता है अपराध करने वालों से तो कोर्ई कुछ नहीं कहता है और ना ही उनकी गलती मानी जाती है। इन तस्वीरों ने भारतीय समाज का शर्मनाक चेहरा दिखाने की कोशिश की है जहां पीडि़ता को ही हर गलती का जिम्मेदार ठहराया जाता है।
इन तस्वीरों में बताई है भारतीय समाज की शर्मनाक सच्चाई
एक जंगल से यह कहानी शुरू होती है। इस तस्वीर में दिखाया गया है कि तरिनिका बहुत खुश है और जिंदादिली से जीवन जीती है।
तरिनिका पिता के साथ अपना अनुभव बांटती हुई दिखाई दे रही है। वह अपने पिता के साथ सुरक्षित महसूस करती है।
जंगल घूमना तरिनिका को भी बहुत पसंद है, वह जंगल में प्रकृति के नजारे देखना चाहती है।
जंगल में कुछ दूरी पर ही चार लोग बैठे हैं और आपस में बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
वह चारों लोग जंगल की तरफ बढ़ते जा रहे हैं।
उन चारों लोगों ने तरिनिका को जंगल में देखा और आपस में एक प्लान बना लिया।
उन चारों लड़कों ने सोच लिया कि जंगल घना है और लड़की उस जंगल में बिल्कुल अकेली है तो क्यों न मौके का फादया उठा लेते हैं।
उन चारों लोगों में से जो उन सभी का सरगना लगता है वह तरिनिका का पल्लू खींचने की कोशिश भी करता है।
उसके बाद दो लोग तरिनिका को पकड़ लेते हैं और तरिनिका अपने आपको उन लोगों से छुड़ाने की पूरी कोशिश करती हैं लेकिन नाकाम हो जाती है।
अभी तक तो उस शख्स ने यह मन बना लिया है कि वह तरिनिका की इज्जत को तार-तार कर देगा।
वही चार लोग एक दूसरे से मशवरा करते हैं और जब तरिनिका उनका विरोध करती है तो उसके चेहरे पर घूंसा मार देते हैं।
उसके बाद तरिनिका का चेहरा खून से लथ पथ हो जाता है। चारों लोग तरिनिका को वहां से घसीट कर लेकर चले जाते हैं।
तरिनिका छटपटाती हुई नजर आती है और उन लोगों से छोडऩे की गुहार कर रही होती है।
उनमें से एक व्यक्ति तरिनिका की आंखों से आंखें मिलाता है और उसकी आंखों से उसका दर्द बह जाता है।
तरिनिका मदद की गुहार लगा रही होती है और उस शख्स को उसकी चीखें अंदर से पूरी तरह झकझोर कर रख देती है।
वह शख्स खड़ा हो जाता है औैर अपने साथियों का विरोध करता है।
तरिनिका की इज्जत बचाने केलिए वह शख्स अपने साथियों से भिड़ जाता है।
तरिनिका दर्द में कराह रही होती है और अपनी आंखों से उस शख्स को धन्यवाद करती है।
तरिनिका जब बलात्कार की कोशिश केबाद अपने पिता यानी अप्पा से मिलती है तो उसे पिता के साथ अपनी आखिरी तस्वीर याद आ जाती है। मुझे कुछ याद आ जाता है। मैं तब छोटी बच्ची थी। एक दिन मैं अपने घर के बाहर खेल रही थी। मैं पत्थर के कुछ टुकड़ों पर फिसली और औंधे मुंह जमीन पर गिरी। मेरे अप्पा ने मुझे दर्द से चीखते सुना तो दौड़े चले आए। अस्पताल ले जाते वक्त उन्होंने मुझे चुप कराने के लिए बहादुर लड़की की कहानी भी सुनाई, मगर मैं रोती रही। जब डॉक्टर ने मेरा जख्म साफ किया और पट्टी बांधी जब जाकर मैंने रोना बंद किया। दो दिन बाद पट्टी खोल दी गई और जब मैंने खुद को आइने में देखा तो माथे पर लाल निशान बन गया था। मेरी आंखों में आंसू आ गए, मैं भागकर अप्पा के पास गई और पूछा कि ये क्या है, क्या ये हमेशा ऐसे ही रहेगा। अप्पा ने हंसते हुए मुझे गोद में उठाया और समझाया कि इससे डरने की जरूरत नहीं है, इसे ‘दाग’ कहते हैं। उन्होंने कहा कि यह जैविक प्रक्रिया है और इससे जख्म को ठीक होने में मदद मिलती है, यह कुछ दिन में चला जाएगा लेकिन मुझे यकीन नहीं हुआ।
मैं जब भी आइने में देखती तो अजीब सा लगता। अगले कुछ दिनों तक, जब भी मैंने लॉन में कोई पत्थर देखा, मैंने उसे उठाया और पूरी ताकत से खुद से दूर फेंक दिया। एक दिन अप्पा ने मुझे ऐसा करते देखा और पूछा कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूं। मेरे बताने में उन्होंने समझाया कि मेरा गिरना पत्थर की गलती नहीं थी। उन्होंने कहा कि पत्थर तो निर्जीव होते हैं, उन्हें प्रकृति जहां-तहां छोड़ देती है। उन्होंने इसे एक हादसा कहा और सलाह दी कि मैं किसी सजीव की तरह अगली बार सावधान रहूं ताकि दोबारा मैं न गिरूं। मुझे याद है कि मेरा पक्ष न लेने की वजह से मैं उनसे (अप्पा) गुस्सा हो गई थी। कुछ दिनों में दाग चला गया और जिंदगी आगे बढ़ गई।
वह याद मुझे किसी लहर की तरह धोकर चली गई जब मैं यहां चेहरे पर खून और दिल में दाग लिए बैठी हूं। क्या ये भी मेरी गलती है? क्या ये मेरी गलती है कि मैंने जंगल का रास्ता चुना और इन लोगों के सामने पड़ गई? क्या ये भी एक हादसा था? क्या इन लोगों में भी जान नहीं है? क्या मुझे बाहर निकलते वक्त और सावधान रहना चाहिए और मेरी आंखों को हर वक्त राक्षसों पर नजर रखनी चाहिए? और क्या अबसे मुझे सिर्फ घर पर रहना चाहिए क्योंकि जब इन राक्षसों में से कोई मेरे सामने आएगा तो मैं अपनी रक्षा नहीं कर पाऊंगी? और सबसे जरूरी, क्या ये जख्म गायब हो जाएगा? क्या मैं आगे बढ़ पाऊंगी?