10 घंटे की चर्चा के बाद राज्यसभा में 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण बिल के लिए संविधान संशोधन बिल पास हुआ बिल के समर्थन में 165 वोट पड़े और विरोध में 7 वोट पड़े। सदन में कुल 172 सांसद मौजूद थे। संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के बाद राष्ट्रगीत की धुन बजाये जाने के पश्चात उपसभापति हरिवंश ने सदन की बैठक को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की। लोकसभा में भी बिल पास हो चूका है। अब राष्ट्पति के पास बिल भेजा जायेगा।
आपको बता दे कि इससे पहले सामान्य वर्ग के लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में दस प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पर राज्यसभा में बुधवार को हुयी चर्चा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसका समर्थन किया। हालांकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा नीत केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए इसके लाए जाने के समय पर सवाल किया और आरोप लगाया कि यह राजनीति से प्रेरित कदम है।
सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने संविधान (124वां) संशोधन विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए सवाल किया कि ऐसी क्या बात हुयी कि यह विधेयक अभी लाना पड़ा? उन्होंने कहा कि पिछले दिनों तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हार के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि इन विधानसभा चुनावों में हार के बाद संदेश मिला कि वे ठीक काम नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार जब अपने कार्यकाल के आखिरी चरण (डिपार्चर लाउंज) में है, तब उसने यह कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि सरकार चार साल सात महीने बाद यह विधेयक लेकर आयी है। यह इस आखिरी सत्र है और उसके बाद चुनाव होने हैं। उन्होंने कहा कि देश की जनता भोली और सज्जन है तथा वह आशीर्वाद भी देती है लेकिन वह मूर्ख नहीं है। जनता एक बार वादों में भले ही बहक जाए लेकिन उसे हिसाब देने का समय भी आ रहा है। शर्मा ने आरक्षण के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि 2014 के चुनाव में कई सब्जबाग दिखाए गए और लोगों से बड़े बड़े वायदे किए गए। उन्होंने सरकार पर युवाओं एवं किसानों से वादाखिलाफी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसे पहले अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए काम करना चाहिए।
लोकसभा में 10% सवर्ण आरक्षण बिल के लिए संविधान संशोधन बिल हुआ पास
उन्होंने कहा कि सरकार हर साल रोजगार के दो करोड़ मौके सृजित करने की बात कर रही थी लेकिन वास्तव में इसका उलटा हुआ। उन्होंने कहा कि सरकार के विभिन्न कदमों से न सिर्फ रोजगार के मौके कम हो गए वहीं अर्थव्यवस्था को भी भारी झटका लगा। उन्होंने कहा कि इस संबंध में व्यापक चर्चा होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि सरकार को महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने के बारे में भी विचार करना चाहिए।
भाजपा के प्रभात झा ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि उनकी सरकार गरीबों के लिए काम करेगी। यह विधेयक उसी दिशा में उठाया गया कदम है। उन्होंने कहा कि यह सरकार पिछले साढ़े चार साल से लगातार गरीबों के लिए काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से समाज का एक बड़ा तबका काफी उल्लास में है। उन्होंने कहा कि जब यह विधेयक आया तो सभी अवाक रह गए। उन्होंने कहा कि यह विधेयक करोड़ों युवाओं से जुड़ा है और करीब 95 प्रतिशत आबादी इस आरक्षण के दायरे में आएगी।
चर्चा में हिस्सा लेते हुये सपा के रामगोपाल यादव ने विधेयक का समर्थन किया किंतु सरकार पर चुनावी लाभ के लिये हड़बड़ी में यह कदम उठाने का आरोप लगाया। उन्होंने मोदी सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में यह विधेयक पेश किये जाने पर सवाल उठाते हुये कहा ‘‘इस कानून को बनाने के लिये ना तो अतिरिक्त कोष की जरूरत थी ना ही यह धन विधेयक है। फिर सरकार को इसे पेश करने में इतना वक्त क्यों लग गया।’’
यादव ने आगाह किया कि इससे सामान्य वर्ग के लोगों को लाभ होने के बजाय नुकसान होगा। उन्होंने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा तय की है। विधेयक में प्रस्तावित आठ लाख रुपये सालाना आय की गरीबी की सीमा के मुताबिक 98 फीसदी सवर्ण आरक्षण के दायरे में होंगे। इन्हें दस प्रतिशत आरक्षण मिलेगा जबकि शेष दो प्रतिशत सवर्णों को स्वत: 40 प्रतिशत आरक्षण मिल जायेगा, यह कितना न्यायोचित है।
गरीब सवर्णों को आरक्षण, समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में मजबूत कदम : शाह
चर्चा में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यादव को बीच में टोकते हुए कहा कि सपा के घोषणा पत्र में मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि यदि मुसलमानों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो क्या शेष मुसलमानों को इससे नुकसान नहीं होगा?
इस पर यादव ने कहा कि उनकी पार्टी ने सत्ता में रहने पर इस तरह का आरक्षण देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
उन्होंने वंचित वर्गों के आरक्षण का अब तक वांछित लाभ नहीं मिल पाने का हवाला देते हुये निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू करने, पिछड़े वर्गों की आबादी में 54 प्रतिशत हिस्सेदारी को देखते हुये 54 प्रतिशत आरक्षण देने और अनुसूचित वर्गों की बढ़ी हुयी आबादी के हिसाब से आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग की।
अन्नाद्रमुक के ए नवनीत कृष्णन ने विधेयक का विरोध करते हुये इससे संवैधानिक संकट पैदा होने के बारे में सरकार को आगाह किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक संविधान के विरुद्ध होने के कारण कानून की कसौटी पर अदालत में टिकने योग्य नहीं है।
नवनीत ने इस विधेयक को संविधान विरूद्ध बताते हुए अपने दल के सदस्यों के साथ वाकआउट करने की घोषणा की और वे सब सदन से बाहर चले गये।
तृणमूल कांग्रेस के डेरिक ओ ब्रायन ने विधेयक का समर्थन करते हुये इसे पेश करने के सरकार के तरीके पर सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि देश में कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की अवहेलना की जा रही है।
ब्रायन ने कहा कि मौजूदा सरकार ने विधेयकों पर सदन में चर्चा और समीक्षा की परंपरा को लगभग खत्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों में लगभग 70 प्रतिशत विधेयक समीक्षा के दौर से गुजरते थे लेकिन यह स्तर अब 20 प्रतिशत रह गया है।
चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए केन्द्रीय मंत्री एवं लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा कि ऊंची जाति के कई लोगों ने पिछड़ी जाति के लोगों को आरक्षण प्रदान करने में बीज देने का काम किया।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद ऊंची जाति के लोगों में भी गरीबी बढ़ी है और उनकी कृषि भूमि का रकबा घटा है। उन्होंने कहा कि आज जब इस वर्ग को आरक्षण देने की बात आयी है तो हम सभी को कंधे से कंधा मिलाकर इसके लिए संघर्ष करना चाहिए।
पासवान ने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार अनुसूचित जाति उत्पीड़न निवारण कानून पर आये उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद कानून बनाने का साहस दिखाया।
उन्होंने कहा कि यह सरकार सबका साथ सबका विकास के लक्ष्य को लेकर आगे चल रही है। उन्होंने कहा कि जिस कांग्रेस में ऊंची जाति के लोगों का वर्चस्व है, उसने कभी सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने की पहल नहीं की। उन्होंने कहा कि एक गरीब के बेटे (प्रधानमंत्री मोदी) ने यह साहस दिखाया। उन्होंने कहा कि सभी को यह नहीं भूलना चाहिए कि सामान्य वर्ग को यह आरक्षण अनुसूचित जाति, जनजाति एवं ओबीसी को दिये जा रहे आरक्षण को काटकर नहीं दिया जा रहा बल्कि अलग से दिया जा रहा है।
चर्चा में भाग लेते हुए बसपा नेता सतीशचन्द्र मिश्र ने कहा कि उनकी पार्टी प्रमुख मायावती ने संसद के भीतर और बाहर कई बार गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात कही है।
उन्होंने सरकार से कहा कि वह इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की जो सीमा तय की जा चुकी है, उसे हटाने के लिए संविधान संशोधन क्यों नहीं ला रहे हैं?
मिश्रा ने यह भी सवाल किया कि सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम साल में यह निर्णय क्यों किया? उन्होंने कहा कि सरकार ने इसके लिए कोई मानक नहीं तय किये हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव को देखते हुए सरकार का यह कदम महज एक ‘‘छलावा’’ है।
बसपा नेता ने कहा कि सरकार को अल्पसंख्यकों को अलग से आरक्षण देना चाहिए। उन्होंने पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने वाले विधेयक अब तक पेश नहीं करने का सवाल उठाते हुये कहा कि सत्तारूढ़ भाजपा इसलिए डरी हुई है क्योंकि बसपा एवं सपा ने हाथ मिला लिये हैं, इसीलिए यह आरक्षण का विधेयक लाया गया है।
राकांपा के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि इस विधेयक का क्या प्रभाव होगा, यह लोगों को चुनाव के बाद ही समझ आयेगा। उन्होंने कहा कि हमारे समाज को सामाजिक न्याय की बहुत आवश्यकता है और इसके लिए समय समय पर हमें विभिन्न उपाय करते रहना चाहिए।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने किया आरक्षण बिल के समर्थन का ऐलान
चर्चा में हिस्सा लेते हुये बीजद के प्रसन्ना आचार्य ने कहा कि सरकार ने चुनाव के ठीक पहले यह विधेयक पेश कर अपनी ‘गंभीर बीमारी’ की स्थिति को साफ कर दिया है। आचार्य ने कहा कि हाल ही में तीन राज्यों के चुनाव परिणाम से नाजुक स्थिति में पहुंची सरकार आक्सीजन के रूप में इस विधेयक का इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि मौजूदा समय में रोजगार सृजन की दर शून्य होने का हवाला देते हुये कहा कि दस प्रतिशत आरक्षण देने के बावजूद रोजगार मिलने की दर शून्य ही रहेगी।
जदयू के आरसीपी सिंह ने विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि संविधान लागू होने के समय अनुसूचित जातियों, फिर अन्य पिछड़े वर्गों और अब कम आय वर्ग के सवर्णों को आरक्षण देना समावेशी विकास का नमूना है। सिंह ने कहा कि इससे आर्थिक असमानता की खाई को पूरा किया जा सकेगा जो सामाजिक समता और समरसता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
चर्चा में हिस्सा लेते हुये तेदेपा के वाई एस चौधरी ने विधेयक का समर्थन करते हुए आरोप लगाया कि इसे जल्दीबाजी में लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह एक संविधान संशोधन विधेयक है और इसलिए पहले लाया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि हम चाहते थे कि इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाता।
टीआरएस के सदस्य बंदा प्रकाश ने भी इसका समर्थन किया। हालांकि उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक को भी पारित कराए जाने की मांग की। उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए अलग मंत्रालय बनाए जाने की मांग की।
माकपा के ई करीम ने कहा कि वह विधेयक के सिद्धांत का समर्थन करते हैं लेकिन इस विधेयक से मकसद पूरा नहीं होगा। देश में विकास का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश में आम लोगों का नहीं बल्कि एक खास वर्ग का ही विकास हुआ।
राजद के मनोज झा ने विधेयक का पुरजोर विरोध किया और कहा कि उनका मानना है कि सरकार संविधान के मूलभूत ढांचे के साथ छेड़छाड़ कर रही है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा ने व्यापक विचार विमर्श के बाद संविधान तैयार किया था। झा ने आरोप लगाया कि संविधान की आत्मा को मारने का प्रयास किया जा रहा है।
आरक्षण विधेयक पारित होना देश के लिए ‘ऐतिहासिक क्षण’: मोदी
राजद सदस्य ने कहा कि आरक्षण मनरेगा या कोई अन्य कार्यक्रम नहीं है, यह प्रतिनिधित्व का मामला है। उन्होंने निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने तथा जातिगत आबादी के आंकड़ों को सार्वजनिक किए जाने की मांग की। उन्होंने दलित मुस्लिमों को भी आरक्षण के दायरे में लाए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार ठहरे हुए पानी में कंकड़ डाल रही है और स्थिति का परीक्षण कर रही है।
चर्चा में भाग लेते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले को मैच जिताने वाला छक्का बताते हुये कहा कि अभी इस मैच में विकास से जुड़े और भी छक्के देखने को मिलेंगे।
प्रसाद ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुये कहा कि सरकार ने यह साहसिक फैसला समाज के सभी वर्गों को विकास की मुख्य धारा में समान रूप से शामिल करने के लिये किया है।
सरकार पर अपने वादों को पूरा नहीं करने के विपक्ष के आरोप पर प्रसाद ने कहा ‘‘मैच जिताने वाला यह पहला छक्का नहीं है, अभी ऐसे और भी छक्के लगेंगे।’’
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक को लेकर सरकार पर ‘‘हड़बड़ी’’ दिखाने का आरोप लगाते हुए सवाल किया कि जब सरकारी क्षेत्र में नौकरियां ही बहुत कम सृजित हो रही हैं तो ऐसे में इस आरक्षण का लाभ किसे मिलेगा? उन्होंने कहा कि इसे प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से यह विधेयक लाया गया और पारित किया जा रहा है, उससे वह दुखी हैं। उन्होंने सवाल किया कि सरकार को क्या जल्दी है? उन्होंने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का सुझाव दिया।
आरक्षण : कपिल सिब्बल ने सरकार से पूछा- 8 लाख का मापदंड कैसे तय किया
उन्होंने कहा कि इस विधेयक को लाने में सरकार ने बिल्कुल दिमाग नहीं लगाया। दूसरी बात, इसकी संवैधानिकता को लेकर सवाल है। तीसरी बात, इसे किस तरह लागू किया जाएगा, इसे लेकर भी तमाम आशंकाएं हैं।
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार ने यह विधेयक लाने से पहले कोई सर्वेक्षण नहीं करवाया है। सरकार एक दिन में बिना किसी आंकड़े या रिपोर्ट के आधार पर इस विधेयक को पारित करवाना चाहती है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि उन्होंने आठ लाख रूपये की सीमा कैसे तय की?
तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने कहा कि यदि यह संविधान संशोधन विधेयक प्रवर समिति के पास जाता तो न केवल इस पर व्यापक चर्चा होती बल्कि जनता की इस बारे में व्यापक राय मिल पाती।
तेदेपा के सी एम रमेश ने कहा कि सरकार यह विधेयक जल्दबाजी में लायी है और यह कदम सरकार पर उल्टा ही पड़ने जा रहा है।
शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल ने कहा कि इस विधेयक से समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिलेंगे। उन्होंने कहा कि यह आरक्षण को अधिक तर्कसंगत बनायेगा। उन्होंने कहा कि आज हमारे देश के युवा निराश हैं क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था में रोजगार बहुत कम सृजित हो रहे हैं।
कांग्रेस की कुमारी शैलजा ने दावा किया कि जब जनता के दूर जाने की सच्चाई सामने आई तब सरकार हड़बड़ी में यह विधेयक लेकर आयी है। उन्होंने कहा कि इंद्रा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के कारण यह विधेयक न्यायिक समीक्षा में नहीं टिकेगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक भी सिर्फ चुनाव को ध्यान में रखकर सामने लाया गया है इसलिये इसके कानूनी खामियों के मद्देनजर यह जुमला साबित होगा।
शैलजा ने कहा कि सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण को भी सरकार ने पूरा नहीं किया। ऐसे में अदालत में जब इस आरक्षण का आधार पूछा जायेगा तो सरकार के पास कोई जवाब नहीं होगा। उन्होंने इस विधेयक के माध्यम से सरकार पर अनुसूचित एवं पिछड़ी जातियों का आरक्षण कदम दर कदम खत्म करने की शुरुआत करने का आरोप लगाया।
चर्चा में हिस्सा लेते हुये भाजपा के अजय प्रताप सिंह ने कहा कि सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की सरकार की पहल को सराहनीय बताया। उन्होंने विपक्ष द्वारा सरकार की मंशा पर उठाये गये सवालों को बेमानी बताते हुये कहा कि कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों का आरोप है कि यह विधेयक न्यायिक समीक्षा में नहीं टिकेगा। सिंह ने कहा कि अगर कांग्रेस न्यायालय में इसके खारिज किये जाने के प्रति इतनी आश्वस्त है तो फिर अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे शामिल क्यों किया।
चर्चा में हिस्सा लेते हुये भाकपा के डी राजा ने कहा कि सरकार से इस विधेयक के संविधान सम्मत नहीं होने के आधार पर पूछा कि संविधान संशोधन विधेयक बिना प्रवर समित में भेजे पारित कराने की जल्दबाजी नितांत अनुचित है।
कांग्रेस के पी एल पुनिया ने कहा कि सरकारी विभागों में आरक्षित पदों के बैक लाग को दूर करने के लिए वर्तमान सरकार के शासनकाल में कोई पहल नहीं की गयी।
आईएमयूएल के अब्दुल वहाब ने इस विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान की भावना को पूरी तरह से मार डाल देगा।
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि इस बिल के तहत सरकार ने गरीब सवर्णों को धोखा देने का काम किया है। उन्होंने कहा कि बीजेपी की राजधानी में बैठने वाले लोग दलित विरोध हैं और वहीं से इस बिल का दस्तावेज आया है।
नागपुर के प्रमुख यह बोल चुके हैं कि आरक्षण खत्म होना चाहिए और दलितों को आरक्षण को खत्म करने की मंशा के साथ यह बिल लाया गया है। नागपुर में एक भी प्रमुख दलित और पिछड़े वर्ग से नहीं बैठा है, यह इनकी नियत है। उन्होंने सभी दलों से इस बिल को सदन से पारित नहीं होने देने की अपील की।
राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कविता पढ़ते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी ने सवर्णों को आरक्षण देने की हिम्मत दिखाई है इसलिए 2019 में उनकी खिदमत बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 70 साल तक सवर्णों को धोखा दिया है और मेरे पास नरेंद्र मोदी से दोस्ती करने की कला है, इसलिए कांग्रेस छोड़कर मैं बीजेपी की तरफ चला।
सवर्णों को आरक्षण देकर मोदीजी ने मारा है छक्का, 2019 में विजय है उनका पक्का। मोदीजी और शाहजी मुझे दे देंगे थोड़ा धक्का तो मैं कांग्रेस के खिलाफ मार पाऊंगा छक्का।
अठावले ने कहा कि हमेशा से मैं सवर्णों को आरक्षण की मांग करता आया हूं और चुनाव नजदीक आ गया है तो बिल लाने की जरूरत है।
चर्चा में तेदेपा की तोटा सीताराम लक्ष्मी, के रवीन्द्र कुमार, टी जी वेंकटेश, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, मनोनीत राकेश सिन्हा, कांग्रेस के हुसैन दलवई, अहमद पटेल, असंबद्ध सदस्य रीताव्रत बनर्जी, निर्दलीय अमर सिंह ने भी भाग लिया।
10 फीसदी आरक्षण को लागू करने की रूपरेखा पर काम कर रहा है HRD मंत्रालय
आपको बता दे कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय उच्च शैक्षिक संस्थानों में सामान्य वर्ग के ‘‘आर्थिक रूप से कमजोर’’ लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण लागू करने की रूपरेखा पर काम कर रहा है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘‘आर्थिक रूप से कमजोर’’ तबकों के लिए नौकरियों एवं शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण को सोमवार को मंजूरी दी है। भाजपा के समर्थन का आधार मानी जाने वाली अगड़ी जातियों की लंबे समय से मांग थी कि उनके गरीब तबकों को आरक्षण दिया जाए।
सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय इस पर काम कर रहा है कि इस आरक्षण को लागू करने के लिए शैक्षिक संस्थानों में कितनी सीटों को बढ़ाने की जरुरत है।
एक सूत्र ने कहा, ‘‘अभी यह रूपरेखा तैयार नहीं की गई है कि आरक्षण कैसे लागू किया जाएगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त सभी विश्वविद्यालय और शैक्षिक संस्थान चाहे वे सरकारी हो या निजी उन्हें आरक्षण लागू करना होगा।’’
सूत्र ने कहा, ‘‘प्रारंभिक आकलन के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी और आईआईएम जैसे अन्य प्रतिष्ठित उच्च शैक्षिक संस्थानों समेत देशभर में संस्थानों में करीब 10 लाख सीटें बढ़ानी होगी।’’
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, देश में कुल 903 विश्वविद्यालय, 39000 से अधिक कॉलेज और 10,000 से अधिक संस्थान हैं।
यह प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को प्राप्त 50 फीसदी आरक्षण से अलग होगा और इससे कुल आरक्षण 60 फीसदी हो जाएगा।
राज्यसभा की बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित
राज्यसभा का 11 दिसंबर से प्रारंभ हुआ शीतकालीन सत्र बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। उच्च सदन ने अंतिम बैठक में सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के एक ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।
लोकसभा को कल ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था। उच्च सदन की बैठक संविधान (124वां संशोधन) विधेयक को चर्चा कर पारित करने के लिए एक दिन के लिए बढ़ायी गयी।
संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के बाद राष्ट्रगीत की धुन बजाये जाने के पश्चात उपसभापति हरिवंश ने सदन की बैठक को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की। इससे पहले उन्होंने अपने पारंपरिक संबोधन में सदन को बार बार बाधित करने की प्रवृत्ति पर चिंता जतायी। उन्होंने बताया कि हंगामे के कारण सदन के कामकाज में 78 घंटे का नुकसान हुआ। इस दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी।
उच्च सदन का यह सत्र राफेल सौदे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग, कावेरी नदी पर प्रस्तावित बांध का विरोध, आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग सहित विभिन्न मुद्दों पर हुए हंगामे के कारण अधिकतर बैठकों में बाधित रहा। पूरे सत्र के दौरान प्रश्नकाल और शून्यकाल भी एक-दो बैठक को छोड़कर सुचारू रूप से नहीं चल पाया।