इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कासगंज थाने में 22 वर्षीय अल्ताफ की हिरासत में मौत के मामले में राज्य में फास्ट ट्रैक पुलिस अदालतें स्थापित करने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
जनहित याचिका में सुझाव दिया गया है कि फास्ट-ट्रैक अदालतों को हिरासत में यातना, मौत, दुष्कर्म और ऐसे अन्य अपराधों के मामलों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दर्ज FIR, शिकायतों और याचिकाओं पर फैसला सुनाना चाहिए। याचिका में ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित विभिन्न दिशानिर्देशों को लागू करने का भी आह्वान किया है।
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पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने उपरोक्त आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता के अनुसार, अल्ताफ को उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था और बाद में 9 नवंबर को वह कासगंज जिले के कोतवाली में मृत पाया गया।
याचिका में पीयूसीएल ने कहा कि पुलिस हिरासत में संदिग्ध परिस्थितियों में अल्ताफ और ऐसे अन्य लोगों की मौत को कोई भी सामान्य विवेक वाला व्यक्ति संस्थागत हत्या के तौर पर देखता है। जनहित याचिका में अदालत से केंद्र और राज्य सरकारों को उत्तर प्रदेश राज्य के सभी पुलिस स्टेशनों और सीबीआई, एनआईए आदि के ऐसे अन्य पुलिस कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
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याचिका में पुलिस अधिकारियों को जांच के दौरान वीडियोग्राफी के लिए शरीर पर लगे कैमरों और आवश्यक तकनीक से लैस करने का निर्देश देने की भी मांग की। अल्ताफ के मामले के संबंध में, पीयूसीएल ने अदालत से अनुरोध किया कि वह इस मामले की जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन का निर्देश दे।
जनहित याचिका ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि वह पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), यूपी, जिला मजिस्ट्रेट, कासगंज और पुलिस अधीक्षक (एसपी), कासगंज को अल्ताफ के शोक संतप्त परिवार को पूर्ण पुलिस सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दे।