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यूपी विधानसभा चुनाव से पहले अपनों को एकजुट करने में जुटी अनुप्रिया पटेल, कठिन होगी “अपना दल” के लिए आगे की राह

अनुप्रिया पटेल ने ‘‘अपना दल’’ के दोनों कुनबों को एक करने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इस सिलसिले में उन्होंने अपनी मां और अपना दल (कमेरावादी) की मुखिया कृष्णा पटेल के समक्ष उनकी पार्टी का, अपना दल (सोनेलाल) में विलय करने पर विचार जारी है।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव निश्चित है, ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी योजनाओं पर कार्य करने में लग गए है। प्रदेश की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ऊपर जहां अपने विकास के एजेंडे को सबसे ऊपर रखकर जनता के समक्ष जाना है, तो वहीं अन्य पार्टियों को अपनी छवि को एक नया अर्थ देकर एक बार फिर सत्ता की चाबी हासिल करनी है।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने ‘‘अपना दल’’ के दोनों कुनबों को एक करने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इस सिलसिले में उन्होंने अपनी मां और अपना दल (कमेरावादी) की मुखिया कृष्णा पटेल के समक्ष उनकी पार्टी का, अपना दल (सोनेलाल) में विलय करने पर, उन्हें उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार में अपना दल कोटे से मंत्री पद देने तथा पार्टी का आजीवन संरक्षक या राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का विकल्प भी रखा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, अनुप्रिया की कोशिशों में एक पेंच उनकी बहन पल्लवी और उनके पति पंकज निरंजन की भूमिका को लेकर फंसा हुआ है। अनुप्रिया के करीबियों का कहना है कि केंद्रीय मंत्री इन दोनों नेताओं को साथ रखने के पक्ष में नहीं हैं। ज्ञात हो कि अनुप्रिया के पिता सोनेलाल पटेल ने 1955 में ‘‘अपना दल’’ का गठन किया था। वह अपने समय के जानेमाने नेता थे और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय में उनकी खासी पैठ थी।
वर्ष 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद पार्टी की कमान कृष्णा पटेल के हाथों में आ गई थी। बाद में पारिवारिक मतभेदों के कारण अनुप्रिया ने 2016 में अपनी अलग पार्टी अपना दल (सोनेलाल) बना ली। पारिवारिक लड़ाई अदालत में भी पहुंची। विवादों के चलते कृष्णा पटेल ने अपना दल (कमेरावादी) नाम से एक नई पार्टी बना ली। सूत्रों के मुताबिक, कुछ दिन पूर्व अनुप्रिया ने दोनों धड़ों के बीच सुलह की पहल की है।
इसके तहत उन्होंने समझौते के लिए कृष्णा पटेल के समक्ष कई विकल्प रखे हैं। इनमें सबसे प्रमुख विकल्प उन्हें उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार में अपना दल कोटे से मंत्री पद देने के अलावा पार्टी का आजीवन संरक्षक या राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का है। सूत्रों के मुताबिक, अनुप्रिया ने यहां तक कहा है कि अगर कृष्णा पटेल चाहें तो उनके लिए, अनुप्रिया के पति आशीष पटेल विधान परिषद की सदस्यता (एमएलसी) से इस्तीफा दे देंगे या फिर कृष्णा चाहें तो अपनी पसंद की किसी भी सीट से आगामी विधानसभा का चुनाव लड़ सकती हैं।
ज्ञात हो कि अपना दल (एस) का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार में अपना दल (एस) कोटे से अभी एक ही मंत्री हैं। जय कुमार सिंह जैकी के पास कारागार राज्य मंत्री का पद है। उत्तर प्रदेश में अपना दल (एस) के नौ विधायक और दो सांसद हैं। राज्य में मंत्रिपरिषद का विस्तार लंबे समय से प्रतीक्षित है। ‘अपना दल’ को एकजुट करने की कवायद के बारे में अनुप्रिया ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
हालांकि अपना दल (एस) की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष जमुना प्रसाद सरोज ने कहा, ”कृष्णा पटेल जी हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष की मां होने के साथ डॉक्टर सोनेलाल पटेल जी की पत्नी भी हैं। अत: उनका पूरी पार्टी में सम्मान है। अगर हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष के दिए प्रस्ताव के अनुरूप ,वह पार्टी को मार्गदर्शन देने के लिए तैयार होती हैं तो पूरी पार्टी उनका ह्रदय से स्वागत करेगी।’’
बहरहाल, अपना दल के दोनों धड़ों के एकजुट होने की राह में पल्लवी और उनके पति रोड़ा बने हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक, कृष्णा पटेल के समक्ष जो प्रस्ताव रखा गया है, उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि अपना दल (एस) में पल्लवी और उनके पति के लिए कोई जगह नहीं होगी। अपना दल (एस) के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अनुप्रिया अपनी बहन से नाराज हैं क्योंकि वर्ष 2015 में अपना दल में विवाद के दौरान पल्लवी ने उनके ऊपर गबन का झूठा मुकदमा दर्ज कराया था। हालांकि वह मुकदमा खारिज हो गया।
उन्होंने कहा कि पल्लवी ने विवाद के बाद लगभग सारी पैतृक संपत्ति अपने नाम वसीयत करा ली थी। इसमें अनुप्रिया और उनकी छोटी बहन अमन को कोई हिस्सा नहीं दिया गया। अनुप्रिया को पार्टी विवाद के दौरान पल्लवी की भूमिका भी बेहद नागवार गुजरी थी, लिहाजा वह उनसे और उनके पति से राजनीतिक दूरी बनाए रखना चाहती हैं। इस घटनाक्रम से जुड़े एक नेता ने बताया कि अनुप्रिया आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अपना दल के दोनों धड़ों को साथ लाना चाहती हैं ताकि चुनाव में अपना दल (एस) की स्थिति और मजबूत हो तथा वह सहयोगी दल से सीटों को लेकर मोलभाव कर सके।

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