UP: हाशिए पर टिकी कांग्रेस को अरसे से है एक अदद जीत की तलाश, जानें कैसे अपनी ही जन्मभूमि में पिछड़ी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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UP: हाशिए पर टिकी कांग्रेस को अरसे से है एक अदद जीत की तलाश, जानें कैसे अपनी ही जन्मभूमि में पिछड़ी

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ाई रही है। कम ही लोग जानते होंगे कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर टिकी कांग्रेस के जन्म की पटकथा आजादी से पहले चंबल के बीहड़ से घिरे इटावा में लिखी गयी थी।

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ाई रही है। कम ही लोग जानते होंगे कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर टिकी कांग्रेस के जन्म की पटकथा आजादी से पहले चंबल के बीहड़ से घिरे इटावा में लिखी गयी थी मगर विडंबना है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी पिछले करीब 37 सालों से एक अदद जीत के लिये तरस रही है। 
कांग्रेस की स्थापना का खाका इटावा में हुआ था तैयार  
आत्रादी से पहले यहां के कलेक्टर रहे ए.ओ.हूयम ने कांग्रेस की स्थापना का खाका इटावा में रह कर खींचा था। साल 1985 के बाद इटावा जिले की किसी भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हुई है। 1957 से शुरू हुए चुनावी दंगल में कांग्रेस ने भरथना सीट से अपनी विजय यात्रा शुरू की थी। 
तब यहां से घासीराम ने जीत हासिल की थी लेकिन इटावा व जसवंतनगर से कांग्रेस प्रत्याशी हार गए थे। 1962 में कांग्रेस के होतीलाल अग्रवाल इटावा सीट से जीते थे। 1967 में कांग्रेस को तीनों विधानसभा में कोई सीट नहीं मिली जबकि 1969 में कांग्रेस ने तीनों सीटों पर कब्जा किया था। तब इटावा से होतीलाल अग्रवाल, भरथना से बलराम सिंह यादव और जसवंतनगर से विश्वभंर सिंह यादव ने फतह हासिल की थी।  

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1980 में कांग्रेस ने फिर जोरदार वापसी कर तीनों सीटों पर कब्जा जमाया था।  
1974 में भी कांग्रेस इटावा सीट जीतने में कामयाब रही थी। 1977 में कांग्रेस को फिर झटका लगा था। तीनों सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन इमरजेंसी के विरोध में चली लहर में सभी प्रत्याशी हार गए थे। 1980 में कांग्रेस ने फिर जोरदार वापसी कर तीनों सीटों पर कब्जा जमाया था। इटावा से सुखदा मिश्रा, भरथना से गोरेलाल शाक्य और जसवंतनगर से बलराम सिंह यादव जीते थे। 
इसके बाद भी कांग्रेस का टिकट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है 
1985 से लेकर 2012 तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का ग्राफ भले ही उतार-चढ़व वाला रहा हो, पर पार्टी अपने प्रत्याशी जरूर उतारती रही है, लेकिन जीत का स्वाद कांग्रेस को नहीं लग सका है। इसके बाद भी कांग्रेस का टिकट मांगने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। टिकट मांगने वालों की संख्या अभी एक दर्जन से आसपास रहती है। सदर सीट पर सुखदा मिश्र कांग्रेस की अभी तक की अंतिम विधायक है। 
वे वर्ष 1985 के चुनाव में जीतीं थी। 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने इटावा सदर सीट से कोमल सिंह कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा जिनको 12543 वोट हासिल हुये, 2017 में सपा कांग्रेस गठबंधन के कारण इस सीट से उम्मीदवार नही उतारा गया।

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