दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को सीएए (Amended citizenship law) के खिलाफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) में हुई हिंसा की जांच के लिये न्यायिक आयोग गठित करने के लिये दायर याचिका की निर्धारित तारीख से पहले सुनवाई करने की अर्जी पर केंद्र से जवाब मांगा।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जलान की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिये सुनवाई की। पीठ ने सरकार और दिल्ली पुलिस को इस अर्जी पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और इसे पांच जून को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
अर्जी के जरिये याचिका की सुनवाई निर्धारित समय से पहले करने का अनुरोध किया गया है। दरअसल, अदालत ने इसकी सुनवाई जुलाई के लिये निर्धारित की थी। यह अर्जी अधिवक्ता एवं याचिकाकर्ता नबीला हसन की एक लंबित याचिका में दायर की गई है।
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इस याचिका में याचिकाकर्ताओं, छात्रों और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में रहने वाले लोगों पर नृशंस हमले किये जाने तथा पुलिस एवं अर्द्धसैनिक बलों द्वारा विश्वविद्यालय परिसर के अंदर छात्रों पर अत्यधिक बल प्रयोग किये जाने को लेकर पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
अधिवक्ता स्नेहा मुखजी के मार्फत दायर अर्जी में कहा गया है कि सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये 24 मार्च से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू कर रखा है, जिस दौरान लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित है। हालांकि, विश्वविद्यालय के कई छात्रों को पुलिस थाने और अपराध शाखा बुलाया गया।
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इसमें कहा गया है कि छात्रों को पुलिस की जांच के बहाने वहां घंटों बैठाया गया और देश की मौजूदा स्थिति के बावजूद दिल्ली पुलिस के हाथों छात्रों की प्रताड़ना नहीं रूकी है। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने केंद्र, दिल्ली की आप सरकार और पुलिस को नोटिस भेजा था तथा उनका जवाब मांगा था।
इसके अलावा, वकीलों, जामिया के छात्रों, ओखला के बाशिंदों और संसद भवन के सामने स्थित जामा मस्जिद के इमाम ने कई अन्य याचिकाएं दायर की हैं। उन्होंने छात्रों के लिये मुआवजे और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है।